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गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

लखीसराय के एक विधायक जी का हाले दिल "तुझ से नाराज नहीं ज़िन्दगी हैरान हूँ मैं ....

जीत बड़ी चीज़ है .....विजेता भी बड़ा होता है .....लेकिन जब कोई विजेता बनता है तो उसके पीछे सिर्फ वो शख्स जो विजता बनता है वो ही नहीं होता ..बल्कि एक पूरी फ़ौज होती है...जीत के बाद अगर फ़ौज मैं शामिल लोगों को मन माफिक मोहब्बत (लाभ ) नहीं मिलता तो फिर विजेता की किरकिरी होता है .....ये कथा है एक ऐसे ही विजेता का जिसे जीत तो मिली लेकिन फिर भी वो हर रोज हार रहा है .....देखिये उसकी कसमकस वो चाह कर भी कुछ खास नहीं कर पा रहा
बिधायक जी परेशान है ...सात साल तक जी तोड़ मेहनत ...गावं गावं गली गली हर जगह लोगों के बीच पैठ बनाने के लिए भटकने के बाद इस बार मतदाता मालिक ने मौका दिया ....कार्यकर्त्ता भी खुश थे की इस बार दर्द सुनने और समझने वाला नेता विधायक बना है...पैरवी पैगाम के साथ ही कुछ आमदनी भी होगा ही ....सब चका चाक ...उम्मीद पर दुनिया कायम है... वैसे भी जिला स्तर वाले  नेता जी लोगों का कुरता और उजला जूता पर जितना पैसा खर्च होता है बिना नौकरी के कंहा से आएगा ...जरा सोचिये आपकी तनख्वाह अगर २०००० हजार प्रति महीने है तो भी  हिसाब लगा लीजिये तो उतने पैसे में पटना लखीसराय करने वाले किसी छोटे नेता की तरह झाका झक सफेदी वाला कुरता और उजला जूता महीने भर नहीं मेंटेन कर पाइयेगा ...खैर चुनाव हुआ और विधायक जी जीत गये .इनके लिए विधायक बन कर पैसा कमाना कभी मकसद नहीं रहा ...किउन की महरानी के आशीर्बाद से नेता बनने से पहले ही....पैसा इनके पास बहुत आ गया था.....पैसे की चिंता थी नहीं इसलिए छवि भी इमानदार नेता की बनी रही ..शायद यही वजह है की सुपर सी एम् के उम्मीदवार और कई दिग्गज को धूल चटा कर ...भाड़ी अंतर से विधानसभा पहुंचे...शानदार जीत के साथ ही विधायक जी के लिए मुशीबत शुरू हो गया ....समर्थक और कार्यकर्ता पैरवी करवाने के लिए अधिकारी से कर्मचारी तक को फ़ोन करवाने लगा ...नेता जी सहज उपलब्ध और बीच में ही थे इसलिए जो भी कहा उसके लिए ..फ़ोन कर दिए ...नतीजा ये हुआ की एक एक अधिकारी को एक एक नोट पैड...सिर्फ इनके पैरवी को लिखने के लिए रखना पड़ता था ...शुरू में कुछ दिन तक तो सब ठीक चला ...लेकिन इधर ख़बर मिली है की ...विधायक जी परेशान है  ..........जिले के अधिकारी सुनते नहीं ....कर्मचारी पैरवी करने पर काम उल्टा कर देता है .....थानेदार पार्टी के कार्यकर्ताओं का मजाक उडाता  है...दरअसल हुआ ये है की ...विधायक जी के पैरवी के बाद अधिकारीयों को मुद्र्रा दर्शन नहीं हो रहा था ...और तो और कर्मचारी वाला खर्चा भी समर्थक देना नहीं चाहता है ...अब भैया महंगाई अपने चरम पर है ...ऐसे में घोडा अगर घास से दोस्ती करेगा तो ...बीबी और बच्चों के जूते खायेगा...तो हाकिम और हुक्मरान दोनों ने अघोसित कर्फियु लगा दिया है....विधायक जी का फ़ोन आया नहीं की काम उल्टा करो ....विधायक जी करें तो करें क्या बस एक ही रास्ता है ....प्रेस कांफ्रेंस बुलाओ और जम कर मन की भड़ास निकालो.....रटा रटाया एक ही बात है .."भ्रस्टाचार बरदास्त नहीं किया जायेगा...भ्रस्ताचारियों पर कठोर कारवाई होगी ...भ्रस्टाचार में लिप्त  अधिकारी बख्से नहीं जायेंगे ....रिश्वतखोर सावधान आदि आदि ....." ...अब आप ही बताइए ....अखबार में ख़बर छपने से अगर रिश्वतखोरी बंद होती तो.....अन्ना हजारे रामलीला मैदान की जगह अखबार और टी वी के दफ्तर में ही बैठ कर लोकपाल ले आते .....हलाकि विधायक जी के इस बेबसी का सबे ज्यादा मजा विरोधी नहीं बल्कि अपने ही पार्टी के पड़ोस  वाले विधायक जी ले रहे है......तो इस ख़बर का मोरल ये है की अगर कोई काम पड़ जाये तो विधायक जी से फ़ोन करवाने के बदले खुद ही मेहनत कर लीजियेगा ...वर्ना काम ख़राब हो जाये तो मुझे मत कहियेगा.......की आपका विरोधी उ लाला ,उ लाला कहे कर रहा है .....